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सत्ता में कांग्रेस रहे या आए भाजपा 10 साल के लिए संवर गया छत्तीसगढ़ का भविष्य, जानिये कैसे…?

रायपुर,9 मार्च : छत्तीसगढ़ में वर्तमान में कांग्रेस की सरकार है. कांग्रेस को यह सत्ता 15 साल के लंबे इंतजार के बाद मिली है. कांग्रेस की सत्ता बात आज इसलिए मौजूं है क्योंकि आज मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने छत्तीसगढ़ का बजट पेश किया है. यह बजट 1,12,603 करोड़ का है. इस पूरे बजट की मुख्य बात यह रही कि छत्तीसगढ़ में एक बार फिर से पुरानी पेंशन स्कीम (old pension scheme implemented in chhattisgarh) लागू कर दी गई है. इस स्कीम की शुरुआत साल 2004 में की गई थी.

छत्तीसगढ़ सरकार को1680 करोड़ की सालाना बचत, 10 साल में 16800 करोड़


छत्तीसगढ़ में एक बार फिर से पुरानी पेंशन स्कीम लागू हो जाने के बाद शुरुआती उम्मीद जताई जा रही है कि अगले एक दशक तक सरकार पर वित्तीय बोझ नहीं पड़ेगा. वहीं सरकार को सालाना 1680 करोड़ रुपए की अतिरिक्त बचत भी होगी. इससे आगामी 10 सालों में छत्तीसगढ़ सरकार को कुल 16800 करोड़ रुपये की बचत होगी.

जानिये पुरानी और नई पेंशन स्कीम के बारे में सबकुछ, जो आपके लिए जरूरी है…


दोनों पेंशन स्कीम की जानकारी जरूरी है, जिससे आप समझ सकें कि दोनों प्रणालियों में मूल अंतर क्या है. तो आइए सबसे पहले पुरानी पेंशन व्यवस्था की बात करते हैं. पुरानी पेंशन व्यवस्था में ऐसा क्या था कि उसे लागू करने को लेकर कर्मचारियों का लगातार दबाव बना हुआ था.

यह है पुरानी पेंशन व्यवस्था

  • रिटायरमेंट मिलने के बाद पेंशन की सुविधा, यानी प्रतिमाह एक निश्चित राशि मिलती थी.
  • पेंशन की पूरी राशि सरकार देती थी. यह राशि किसी कर्मचारी की अंतिम सैलरी का 50 फीसदी हिस्सा होता था.
  • अगर कोई कर्मचारी 10 साल की नौकरी करने के बाद भी रिटायर होता था, तो उसे भी इसी फॉर्मूले के तहत पेंशन मिलती थी.
  • पेंशन के लिए वेतन में कटौती नहीं की जाती थी.
  • रिटायरमेंट मिलने के बाद बतौर ग्रेच्युटी 16.5 महीने का वेतन मिलता था.
  • नौकरी के दौरान मृत्यु होने पर ग्रेच्युटी 20 लाख मिलती थी और किसी आश्रित को सरकार नौकरी भी मिल जाती थी.
  • पेंशन के दौरान महंगाई भत्ता भी मिलता था.
  • अगर जीपीएफ से पैसा निकासी होती थी तो उस पर कोई भी टैक्स देना नहीं पड़ता था.
  • पेंशनकर्ता को मेडिकल भत्ता भी मिलता था.

यह है पेंशन की नई व्यवस्था….


नई व्यवस्था के तहत इन सुविधाओं को खत्म कर दिया गया. इसका मतलब यह है कि साल 2004 से या उसके बाद जिनकी भी नियुक्तियां हुईं, उन्हें पेंशन मिलने की कोई गारंटी नहीं है. उन्हें जीपीएफ की भी सुविधा नहीं दी गई है. रिटायरमेंट के बाद न तो आपको मेडिकल भत्ता मिलेगा और न ही बीमा का लाभ ही. न वेतन आयोग का फायदा और न ही महंगाई भत्ता ही मिल सकेगा.

  • नई पेंशन स्कीम में आपका कंट्रीब्यूशन कितना होता है, इस पर पेंशन निर्धारित हो गई है. पहले वाली पेंशन योजना में कितने साल भी आप नौकरी कर लें, अंतिम सैलरी का आधा हिस्सा पेंशन के रूप में दिया जाता था.
  • नई व्यवस्था में आपको हर महीने पेंशन के लिए कंट्रीब्यूशन करना होता है. रिटायर होने पर इस रकम का 60 फीसदी आप निकाल सकते हैं, जबकि बाकी 40 फीसदी राशि से आपको बीमा कंपनी का एन्यूटी प्लान खरीदना होता है. इससे मिलने वाले ब्याज से ही आपकी पेंशन निर्धारित होती है.
  • नई पेंशन व्यवस्था के तहत पारिवारिक पेंशन भी खत्म कर दिया गया है. पेंशन के नाम पर वेतन से प्रतिमाह 10 फीसदी कटौती भी होती है. हालांकि नई पेंशन स्कीम की राशि सरकार इक्विटी में लगाती है, लिहाजा आपको उस पर अच्छा रिटर्न मिल मिलने की संभावना बनी रहती है.
  • नई व्यवस्था में सरकारी कर्मचारियों के मूल वेतन और डीए का 10 फीसदी कटता है. इतनी ही राशि सरकार कंट्रीब्यूट करती है. लेकिन केंद्र सरकार अपने कर्मियों के लिए 14 फीसदी का योगदान करती है.

वाजपेयी सरकार ने ही खत्म कर दी थी पुरानी पेंशन व्यवस्था


बता दें कि वाजपेयी सरकार ने ही पुरानी पेंशन व्यवस्था को खत्म किया था और उसकी जगह नईं पेंशन व्यवस्था लागू की गई. हालांकि, तब केंद्र ने साफ कर दिया था कि यह व्यवस्था केंद्रीय कर्मचारियों के लिए है. राज्यों को इसे लागू करने के लिए बाध्य नहीं किया गया था. हालांकि, बाद में यह देखा गया कि कई राज्य सरकारों ने केंद्र की इसी पेंशन व्यवस्था को अपने यहां लागू कर दिया. कुछ लोगों का कहना है कि नई पेंशन व्यवस्था के लागू होने से पहले भरोसा दिया गया था कि यह अधिक लाभकारी होगा. लेकिन बाद में जब सारी चीजें क्लियर हुईं, तब जाकर कर्मचारियों को लगा कि उन्हें पहले वाली पेंशन व्यवस्था में अधिक सुविधाएं मिलती थीं.

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