झोलाछाप डॉक्टरों के हौंसले बुलंद, चंद पैसो के लिए मरीजों की जान से खेल रहे झोलाछाप डॉक्टर.
जगदलपुर,6 फरवरी। बस्तर जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में झोलाछाप डॉक्टरों की भरमार है। चाय की गुमटियों जैसी दुकानाें में झोलाछाप डॉक्टर मरीजों का इलाज कर रहे हैं। मरीज चाहे उल्टी, दस्त, खांसी, बुखार से पीड़ित हो या फिर अन्य कोई बीमारी से। सभी बीमारियों का इलाज यह झोलाछाप डॉक्टर करने को तैयार हो जाते हैं। खास बात यह है कि अधिकतर झोलाछाप डॉक्टरों की उम्र 25 से 40 साल के बीच है। वही इलाज के दौरान मरीज की हालत बिगड़ती है तो उससे आनन फानन में महारानी हॉस्पिटल या फ़िर डीमरापाल मेडिकल कॉलेज भेज दिया जाता है। जबकि यह लापरवाही कि जानकारी स्वास्थ्य विभाग के आला अधिकारियों को भी है। बावजूद इसके भी कोई कार्रवाई नहीं देखने को मिलती।
ताज़ा मामला जिले के लोहंडीगुड़ा ब्लॉक के बड़ाँजी कि है जहां गाँव के कुछ लोगो ने नाम नहीं छापने के शर्त पर बताया कि गांव में घनाराम साहू नामक व्यक्ति ने घर पर ही क्लीनिक संचालित कर रखी है जहां पर गांव के अलावा आस-पास के गांव के लोग अपना इलाज करवाने आते है। जहां घनाराम साहू मरीजों का मलेरिया, दस्त, बुखार, सर्दी – खासी जैसी ओर भी कई बीमारी का इलाज कर रहे है। साथ ही मरीजों को इंजेक्शन वह ग्लूकोस बॉटल चढ़ाने का काम भी करते हैं। वही सूत्र बताते है कि घनाराम साहू ने ना तो कभी डॉक्टरी कि है ओर ना ही इनके पास एमबीबीएस की डिग्री है।(साहब के पास बीएमएस की डिग्री मौजूद है) बावजूद इसके भी इनके द्वारा लगभग 20 साल से मरीजों का इलाज किया जा रहा है, वही घनाराम साहू कि दो पुत्री है जो इस काम में इनकी मदद भी करती है। सूत्र यह भी बता रहे है कि इसकी लिखित शिकायत संबंधित विभाग को कि गई है बावजूद इसके भी अब तक किसी भी प्रकार कि कार्यवाही अब तक नहीं हुई।
बिना लाइसेंस के दवाओं का भंडारण भी करते हैं झोलाछाप डॉक्टर!
झोलाछाप चिकित्सकों द्वारा बिना पंजीयन के एलोपैथी चिकित्सा व्यवसाय ही नहीं किया जा रहा है। बल्कि बिना ड्रग लाइसेंस के दवाओं का भंडारण व विक्रय भी अवैध रूप से किया जा रहा है। दुकानों के भीतर कार्टून में दवाओं का अवैध तरीके से भंडारण रहता है। बावजूद इसके भी स्वास्थ्य विभाग द्वारा अवैध रूप से चिकित्सा व्यवसाय कर रहे लोगों के खिलाफ किसी तरह की कार्रवाई नहीं की जाती है।
इन दिनों मौसमी बीमारियों का कहर है। झोलाछाप डॉक्टरों की दुकानें मरीजों से भरी पड़ी हैं। धीरे- धीरे बढ़ रही गर्मी के कारण इन दिनो उल्टी, दस्त, बुखार जैसी बीमारियां ज्यादा पनप रही हैं। झोलाछाप इन मरीजों का इलाज ग्लूकोज की बोतलें लगाने से शुरू करते हैं। एक बोतल चढ़ाने के लिए इनकी फीस 100 से 200 रुपए तक होती है।
स्वास्थ्य विभाग नहीं करता कार्रवाई !
झोलाछाप डॉक्टरों की वजह से अब तक कई लोगों की असमय जान चली गई है। लेकिन अभी तक स्वास्थ्य विभाग ने स्थाई तौर पर झोलाछाप डॉक्टरों पर कार्रवाई नहीं की। झोलाछाप डॉक्टर लगातार मरीजों की जान से खिलवाड़ कर रहे हैं और प्रशासन दूर से ही इन्हें देख रहा है।
केस बिगड़ने पर अस्पताल रैफर कर देते हैं मरीज.
बीते कुछ वर्षों से फर्जी डिग्रीधारी डॉक्टरों की वृद्धि हुई है। ग्रामीण क्षेत्र में कोई मात्र फर्स्ट एड के डिग्रीधारी हैं तो कोई अपने आप को बवासीर या दंत चिकित्सक बता रहा है लेकिन इनके निजी क्लीनिकों में लगभग सभी गंभीर बीमारियों का इलाज धड़ल्ले से किया जा रहा है। कुछ डॉक्टरों ने तो अपनी क्लिनिक में ही ब्लड जांच, यूरीन जांच, बोतल चढ़ना, इंजेक्शन लगाना इत्यादि की सुविधा भी कर रखी है।
वही मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉक्टर डीo राजन का कहना है कि
किसी डॉक्टर का अगर छत्तीसगढ़ में पंजीयन है और वह क्लिनिक में बैठकर प्रैक्टिस करना चाहता है, तो उसे क्लिनिक का नर्सिंग होम एक्ट के तहत पंजीयन करवाना अनिवार्य है। अगर सम्बन्धित क्लिनिक नर्सिंग होम एक्ट के तहत पंजीयन नहीं है तो उसके खिलाफ नर्सिंग होम एक्ट के तहत कानूनी कार्रवाई की जाएगी।