एक्सक्लूसिव : क्यों आता है CRPF जवानों को गुस्सा…केंद्रीय सुरक्षा बलों में ‘संघर्ष और तनाव’ की क्या है कहानी?
एक्सक्लूसिव(ARC NEWS):देश के सबसे बड़े केंद्रीय अर्धसैनिक बल, ‘सीआरपीएफ’ में सोमवार को हुई घटना ने देश को हिलाकर रख दिया है। छत्तीसगढ़ के सुकमा में सीआरपीएफ 50वीं बटालियन में एक जवान ने अपने ही साथियों पर ‘एके 47’ स्वचालित राइफल से गोलियां चला दीं। इस घटना में चार जवानों की मौत हो गई, जबकि कई अन्य जवान घायल हैं। आखिर सीआरपीएफ जवानों को गुस्सा क्यों आता है, वे एकाएक अपने साथियों पर घातक वार कर बैठते हैं। ऐसे कई सवाल हैं, जिनका जवाब अभी तक नहीं मिल सका है। पिछले एक दशक से केंद्रीय गृह मंत्रालय और बल मुख्यालय का इस बाबत एक ही जवाब रहा है कि जवान के परिवार में कोई परेशानी रही होगी। वह परेशानी जब उसके दिमाग पर हावी हो जाती है, तो उस स्थिति में जवान, घातक कदम उठा लेता है। कॉन्फेडरेशन ऑफ एक्स पैरामिलिट्री फोर्स वेलफेयर एसोसिएशन जब आरटीआई एक्ट के तहत यह सूचना मांगती है कि सीएपीएफ में कितने जवानों को एक साल में 100 दिन की छुट्टी मिली है, तो जवाब देने से मना कर दिया जाता है। ‘संघर्ष और तनाव’ की ये कहानी केवल ‘सीआरपीएफ’ नहीं, बल्कि ‘सीएपीएफ’ की है।
100 दिन छुट्टी की घोषणा एक छलावा
सुकमा के अलावा जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में सीआरपीएफ की 185वीं बटालियन में तैनात एक जवान ने आत्महत्या कर ली है। सीआरपीएफ में 2020 से लेकर इस साल सितंबर माह तक 100 से अधिक जवानों ने आत्महत्या की है। कॉन्फेडरेशन ऑफ एक्स पैरामिलिट्री फोर्स वेलफेयर एसोसिएशन के महासचिव रणबीर सिंह का कहना है कि जवान, बहुत दबाव में ड्यूटी देते हैं। दिसंबर 2019 को सीआरपीएफ की नई बिल्डिंग का नींव का पत्थर रखने पहुंचे केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था, सीएपीएफ में ऐसी व्यवस्था बनाई जा रही है, जिसके अंतर्गत केंद्रीय सुरक्षा बलों के जवान 100 दिनों की छुट्टी अपने परिजनों के साथ बिता सकेंगे। इस साल रणबीर सिंह ने गृह मंत्रालय से आरटीआई एक्ट के तहत जब यह सूचना मांगी कि एक साल में कितने जवानों को 100 दिन की छुट्टी मिली है तो मंत्रालय ने वह जानकारी देने से ही मना कर दिया। रणबीर सिंह बताते हैं कि ये घोषणा एक छलावा बनकर रह गई है। जवानों को सौ दिन की छुट्टी मिलेगी, अभी तक ये योजना जमीन पर नहीं उतर सकी है।
जवानों की टेंशन सलाहकार नहीं, मुद्दे हल करने से दूर होगी
सीआरपीएफ में जवानों द्वारा आत्महत्या करना या अपने साथियों पर गोली चला देना, इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए पिछले एक दशक में कई दावे किए गए हैं। जवानों को मानसिक तनाव से दूर रखने के लिए बल ने निजी कंसलटेंट की सेवाएं भी ली। बाकायदा एक लंबा चौड़ा कार्यक्रम बनाया गया। योगा क्लासेज भी शुरू की गईं। अब हाल ही में जवानों के मानसिक स्वास्थ्य के मद्देनजर ‘चौपाल’ कार्यक्रम प्रारंभ किया गया। इसका मकसद जवानों के साथ, अधिकारी उसी लहजे में बात करें, जैसे गांव में चौपाल पर बातचीत होती है। ऐसा माहौल रहे, जहां पर कोई भी जवान बिना किसी भय एवं हिचक से अपनी समस्या रख सके। अगर जवान की बात समय पर सुन कर उसकी समस्या का निवारण कर दिया जाए, तो आत्महत्या या साथियों पर गोली चलाने जैसी खतरनाक स्थिति को रोकने में मदद मिल सकती है। एसोसिएशन का कहना है कि जवानों की टेंशन, मुद्दे हल करने से खत्म होगी। जवानों के साथ अच्छे व्यवहार का सलीका, ऐसे आदेश समय-समय पर आते रहते हैं, लेकिन वे केवल फाइलों में ही होते हैं। जवानों को लेकर अफसरों में कोई बदलाव नहीं दिखता।
ये सब बातें जवानों का मोह भंग करने के लिए काफी हैं
केंद्रीय अर्धसैनिक बलों को सेना जैसा दर्जा नहीं मिल सकता। ‘सीआरपीएफ’ की तरफ से जब केंद्रीय गृह मंत्रालय के पास यह प्रस्ताव भेजा गया कि यहां पर भी सेना की तर्ज पर 15 दिन की बजाए 28 दिन की कैजुअल लीव कर दी जाएं। मंत्रालय ने जवाब दिया है कि 7वें केंद्रीय वित्त आयोग की सिफारिश के अनुसार, यह संभव नहीं हो सकता। सीएपीएफ अनिवार्य तौर से एक सिविलियन फोर्स है। इसकी सेवा शर्तें डिफेंस फोर्सेज से अलग हैं। रणबीर सिंह बताते हैं, कैडर रिव्यू में निचले स्तर के फॉलोवर्स रैंक से निरीक्षक रैंक तक के कमेरा वर्ग की अनदेखी की जा रही है। उच्च स्तर के एडीजी, आईजी, डीआईजी व कमांडेंट आदि पदों की बेहिसाब वृद्धि हो रही है। कंपनी व बटालियन में कार्यरत सिपाहियों के पदों में कमी करना, ये सब बातें जवानों का मोह भंग करने के लिए पर्याप्त हैं। सेना और सीएपीएफ के जवान देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर करते हैं, मगर शहीद का दर्जा केवल सेना के जवान को मिलता है। परिजनों को मिलने वाली आर्थिक मदद में भी काफी अंतर होता है।