बस्तर

आम जनता में चर्चा का विषय क्या दिल्ली की तरह बस्तर में भी गोदी मीडिया का काम तो सक्रिय नहीं हो गया?

बस्तर,3 अक्टूबर। 27 सितंबर को सिलगेर में हुए आंदोलन की खबरें पूरी तरह से मीडिया से गायब रही। सिलगेर में पुलिस कैंप के खिलाफ ग्रामीणों के विरोध प्रदर्शन में मारे गये तीन ग्रामीणों को इंसाफ दिलाने के लिए दक्षिण बस्तर के ग्रामीणों ने एक लम्बी लड़ाई लड़ी, जिसके दबाव में राज्य सरकार ने प्रशासनिक स्तरीय जांच कराने के निर्देश दिये, लेकिन यह जांच रिपोर्ट अभी तक सार्वजनिक नही होने से ग्रामीणों ने 27 सितंबर को फिर से सिलगेर में आंदोलन करने की घोषणा की।

जिसकी खबर मीडिया में आयी, लेकिन 27 सितंबर को सिलगेर में आंदोलन हुआ या नही, इसकी खबर मीडिया में नही आने से आम जनता के बीच चर्चा का विषय बनी कि दिल्ली की तरह बस्तर में भी गोदी मीडिया काम तो सक्रिय नही हो गया है।

क्योकि कुछ दिनों पूर्व ही एड़समेंटा मुठभेड़ की न्यायायिक जांच की रिपोर्ट सार्वजनिक हुई थी जिसमें मुठभेड़ को पूरी तरह से फर्जी करार दिया गया था इसके बाद से सिलगेर में मारे गये ग्रामीण कौन है इसके जानने की उत्सुकता लोगों में बढऩे लगी। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार सिलगेर में गुलाब तूफान के बाद भी सिलगेर में बड़ी संख्या में ग्रामीण पहुंचे, जो इस बात का संकेत है कि सरकार एड़समेंटा जांच रिपोर्ट की तरह सिलगेर जांच रिपोर्ट को लम्बे समय तक दबा नही सकती है।

उन्हें जांच रिपोर्ट सार्वजनिक करके मारे गये ग्रामीणों के बारे में बताना होगा कि वह नक्सली थे या ग्रामीण। ज्ञात हो कि पुलिस मारे गये लोगों को नक्सली बता रही है, वही आंदोलनकारी ग्रामीण, इसी खींचतान के चलते ही सिलगेर आंदोलन अभी तक जारी है।

राजनीतिक जानकारों का कहना है कि कांग्रेस सरकार आदिवासियों को चिंता करने की बात करती है तो फिर जांच रिपोर्ट को लेकर देरी क्यों की जा रही है। जबकि इस मामले को लेकर ग्रामीण अपनी लड़ाई, किसानों की तरह अभी भी लड़ रहे हैं।(credit : श्री शर्मा)

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