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बस्तर दशहरा काछिन गादी पूजा विधान संपन्न, पीहू ने तीसरी बार दशहरा के निविघ्र संपन्नता की दी अनुमति

जगदलपुर,3 अक्टूबर । काछन देवी की अनुमति के बाद होती है बस्तर दशहरे की शुरुवात,बस्तर दशहरा की यह परंपरा 616 वर्षों से अनवरत चली आ रही है,हरेली अमावस्या से बस्तर दशहरे की शुरवात होती है जो 75 दिनों तक चलती है। बस्तर दशहरा में इस वर्ष काछनगादी पूजा विधान आज प्रारंभ हो कर देर शाम संपन्न हुई।

परंपरानुसार पनका जाति की कुंवारी कन्या बेल के कांटे पर काछन देवी के रूप में झूलती हुई राजपरिवार के सदस्यों को बस्तर दशहरा के निविघ्र संपन्नता की अनुमति प्रदान करती है।

राज परिवार के सदस्यों समेत जगदलपुर विधायक एवं प्रदेश अध्यक्ष किरण सिंह देव भी देवी से अनुमति लेने के लिए माझी चालकीयों समेत काच्छन देवी के मंदिर पहुंचे।

गौरतलब है कि काछिनगादी का अर्थ है काछिन देवी को गद्दी देना। काछिन देवी की गद्दी कांटेदार होती है। कांटेदार झुले की गद्दी पर काछिनदेवी विराजित होती है। काछिनदेवी को रण देवी भी कहते है। काछिनदेवी बस्तर अंचल के मिरगानों जाती की देवी है। बस्तर महाराजा के द्वारा बस्तर दशहरा से पहले आश्विन अमावस्या को काछिन देवी की अनुमति से ही दशहरा प्रारंभ करने की प्रथा चली आ रही है।

 

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