दूसरे के लाइसेंस पर चल रहे मेडिकल स्टोर जिम्मेदार नहीं कर रहे कार्रवाई !
जगदलपुर, 3 सितम्बर । नगर सहित ग्रामीण क्षेत्रों में कई जगह मेडिकल स्टोर्स बिना फार्मासिस्ट के ही संचालित हो रहे हैं। स्वास्थ्य विभाग को भी इसकी भनक है, लेकिन किसी भी प्रकार की कार्यवाही देखने को नहीं मिल रही है। नगर सहित ग्रामीण इलाके में दर्जन भर से अधिक मेडिकल स्टोर्स हैं। कहने को तो मेडिकल स्टोर्स के संचालन के लिए डिग्री, डिप्लोमा, सर्टिफिकेट के आधार पर लाइसेंस जारी किए जाते हैं, लेकिन हकीकत इससे परे है।
नगर के कुछ मेडिकल व्यवसायी नियमों को ताक में रखते हुए मेडिकल का संचालन कर रहे हैं। बिना फार्मासिस्ट व जरूरी दस्तावेज के मेडिकल दुकान का व्यवसाय किया जा रहा है। कई मेडिकलों में अपात्र व्यक्तियों को जिम्मेदारी दे दी गई है, जिनको दवाइयों की जानकारी तक नहीं है। इन मेडिकल स्टोर्स के खिलाफ न तो ड्रग इंस्पेक्टर कोई कार्रवाई करते हैं और ना ही स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी। ऐसा ही एक मामला लोहांडीगुड़ा ब्लॉक के बडांजी मे स्थित साहू मेडिकल मे नज़र आ रहा है। जहां पर नियमों की खुलेआम धज्जिया उड़ाई जा रही है।
मिली जानकारी के अनुसार मेडिकल के फरमाशिष्ट प्रेम शंकर शुक्ला है लेकिन वह मेडिकल मे रहते ही नहीं है। और इस मेडिकल का संचालन घनाराम साहू के द्वारा किया जा रहा है। ऐसे मे गैर डिप्लोमा, डिग्रीधारी द्वारा मेडिकल का संचालन करने से मरीजों की जान को खतरा हो सकता है।
वही कुछ दवाई खरीदने वाले से जानकारी ली गई तो उन्होंने अपना नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया की इस मेडिकल मे घनाराम साहू बैठते है और उनकी अनुपस्थिति में घर के कोई भी सदस्य मेडिकल संभालते है, जहा मेडिकल के साथ-साथ इलाज भी किया जाता है, अब गौर करने वाली बात यह है,की दूसरे के नाम के सर्टिफिकेट का उपयोग कर श्री साहू मेडिकल स्टोर्स लाइसेंस का उपयोग कर रहे हैं। तो क्या जिम्मेदार अधिकारी व ड्रग इंस्पेक्टर को इस बात की जानकारी नहीं है? यदि जानकारी है, तो सम्बन्धित अधिकारी कार्यवाई करने से पीछे क्यू हट रहे?
मेडिकल की आड़ में चल रहे फर्जी क्लिनिक
गांवों व छोटे कस्बों में जगह जगह मेडिकल स्टोर की आड़ में अवैध क्लिनिक चलाए जा रहे है। चिकित्सा विभाग को इसकी जानकारी होने के बावजूद भी कार्रवाई नहीं हो रही है। इन मेडिकल संचालकों द्वारा मरीजों से मन माफिक फीस वसूली जाती है। ऐसे में अगर गलत दवा देने से तबीयत खराब हो जाती है, तब उन्हें बड़े अस्पताल जाने की सलाह दी जाती है। ये लोग न तो कोई पर्ची पर दवाई लिखते है और न ही इलाज के लिए कोई प्रमाण छोड़ते हैं। ऐसे में अगर मरीज की सेहत पर कोई असर पड़ता है तो बिना सबूत के इन पर कोई कार्रवाई भी नहीं होती है।
जब इस विषय पर हमने सम्बन्धित विभाग के अधिकारी हेमंत श्रीवास्तव से बात करनी चाही तो उन्होंने कॉल का जवाब नही दिया।