पाकिस्तान: शहबाज़ शरीफ़ बने पीएम, भारत से रिश्तों पर क्या होगा असर?
“पाकिस्तान कश्मीरियों का है और कश्मीरी पाकिस्तान के हैं… कश्मीर में कल जो कुछ हुआ है, उस पर चर्चा के लिए हम सब यहाँ मौजूद हैं. आर्टिकल 35A के तहत कश्मीर का जो स्पेशल स्टेटस था उसको ख़त्म करके मोदी सरकार ने कश्मीर पर कब्ज़ा कर लिया है. कश्मीर की वादी में निहत्थे मुसलमानों का दिन रात ख़ून बह रहा है.”
ये शहबाज़ शरीफ़ के उस भाषण का अंश है जो उन्होंने पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में 6 अगस्त, 2019 को दिया था. यानी कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटने के एक दिन बाद.
उस वक़्त पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) के अध्यक्ष थे और सदन में विपक्ष के नेता के तौर पर बोल रहे थे.
तीन साल बाद, उनका कश्मीर पर दिया गया नया बयान एक बार फिर से सुर्खियों में है.
पाकिस्तान के टीवी चैनल जियो न्यूज़ से बातचीत में उन्होंने कहा है, “पाकिस्तान भारत के साथ शांति चाहता है, लेकिन शांति कश्मीर मुद्दे के समाधान के बिना संभव नहीं है.”
इतना ही नहीं, पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने जब मोदी सरकार के विदेश नीति की सराहना की थी, उसके बाद अपने ट्वीट में उन्होंने इमरान के इस बयान को ‘कश्मीरियों के संघर्ष के साथ विश्वासघात’ बताया था.
उनका ये ट्वीट इसी साल 8 अप्रैल का है.
कश्मीर पर दिए गए शहबाज़ शरीफ़ के इन बयानों की चर्चा भारत में खूब हो रही है.
भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान के अब वो नए प्रधानमंत्री हैं.
ज़ाहिर है कश्मीर पर उनकी सोच क्या है? दोनों देशों के रिश्ते का भविष्य इस पर भी बहुत हद तक निर्भर होगा.
मोदी और नवाज़ शरीफ़ के रिश्ते
यहाँ ग़ौर करने वाली बात ये भी है कि शहबाज़ शरीफ़ उन्हीं नवाज़ शरीफ़ के भाई हैं, जिनसे मिलने भारत के पीएम मोदी दिसंबर 2015 में अचानक लाहौर पहुँचे गए थे.
दिसंबर 2015 में प्रधानमंत्री मोदी ने अफ़ग़ानिस्तान से लौटते हुए अचानक पाकिस्तान जाकर सबको चौंका दिया था.
नवाज़ शरीफ़ उन्हें लेने आए थे और दोनों नेता लाहौर हवाई अड्डे से एक हेलिकॉप्टर में बैठकर रायविंड ले गए थे. इसके बाद प्रधानमंत्री मोदी घर पर हुई शरीफ़ की पोती की शादी में शामिल हुए. कुछ वक़्त रुकने के बाद उन्होंने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ के साथ बैठक भी की थी.
बीते कई सालों में किसी भारतीय प्रधानमंत्री का ये पहला पाकिस्तान दौरा था.
2020 में जब नवाज़ शरीफ़ की मां ब्रिटेन में निधन हो गया था, तब भी भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ”गहरी संवेदना” व्यक्त करते हुए एक चिट्ठी भेजी थी.
उस चिट्ठी में प्रधानमंत्री मोदी ने 2015 में अपनी लाहौर यात्रा के दौरान नवाज़ की मां से हुई मुलाक़ात को याद किया और लिखा था कि, “उनकी सादगी और गर्मजोशी वास्तव में बहुत ही मार्मिक थी.”
शरीफ़ परिवार का भारत से नाता
2013 में शहबाज़ शरीफ़ भारत आए थे और भारत में अपने पुरखों के गांव भी गए थे. शहबाज़ शरीफ़ कश्मीरी मूल के पंजाबी हैं.
शरीफ़ परिवार कश्मीर में अनंतनाग का रहने वाला था जो बाद में व्यापार के सिलसिले में अमृतसर के जटी उमरा गांव में रहने लगा. बाद में अमृतसर से परिवार लाहौर जा पहुंचा. शहबाज़ शरीफ़ की मां का परिवार कश्मीर के पुलवामा से था.
कश्मीर पर शहबाज़ शरीफ़ के बयानों और नवाज़ शरीफ़ परिवार के साथ पीएम मोदी की अच्छी केमेस्ट्री और भारत से उनके पुराने नाते के बीच दोनों मुल्कों में चर्चा हो रही है कि क्या पाकिस्तान में नए प्रधानमंत्री के आने से भारत से रिश्ते बेहतर होंगे?
इंद्राणी बागची पूर्व में टाइम्स ऑफ़ इंडिया की डिप्लोमेटिक एडिटर भी रह चुकी हैं और अब अनंता सेंटर की सीईओ हैं.
अनंता सेंटर, भारत के विकास और सुरक्षा मुद्दों पर काम करने वाली नॉन प्रॉफ़िट संस्था है.
भारत के लिए शहबाज़ शरीफ़ कितने अहम
शहबाज़ शरीफ़, इमरान ख़ान से काफ़ी अलग हैं. जब नवाज़ शरीफ़ पाकिस्तान के प्रधानमंत्री थे, तो शहबाज़ शरीफ़ थोड़ी ‘हार्ड-लाइन’ पोजीशन लेते थे.
नवाज़ शरीफ़ की ही तरह शहबाज़ भी बिजनेसमैन हैं. ऐसे में देखना होगा कि उनका बिजनेसमैन होना, प्रधानमंत्री के तौर पर उनके नज़रिए को कैसे प्रभावित करता है.
शहबाज़ शरीफ़ का राजनीतिक जीवन ज़्यादातर पंजाब प्रांत (पाकिस्तान) में ही केंद्रित रहा है. पंजाब प्रांत पाकिस्तान का सबसे बड़ा और सबसे अमीर प्रांत है. वो तीन बार यहां के मुख्यमंत्री रह चुके हैं.
2018 के आम चुनाव में पीएमएल-एन ने शहबाज़ शरीफ़ को अपना प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनाया था.
इस साल हुए आम चुनाव में तहरीक़-ए-इंसाफ़ (पीटीआई) सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और इमरान ख़ान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने. चुनाव हारने के बाद शहबाज़ शरीफ़ को विपक्ष के नेता के रूप में चुना गया.
इंद्राणी कहती हैं, “शहबाज़ पीएमएल-एन की पारंपरिक पॉलिटिक्स करते हैं जबकि इमरान ख़ान विरोध-धरना प्रदर्शन की राजनीति के लिए जाने जाते हैं. इमरान खान पहले क्रिकेटर थे जबकि शहबाज़ बिजनेसमैन परिवार से आते हैं. इस वजह से ऐसा माना जा रहा है कि शहबाज़ भारत के साथ अच्छे व्यापारिक रिश्तों के हिमायती होंगे. पाकिस्तान की ख़स्ताहाल अर्थव्यवस्था को देखते हुए भी ऐसा कहा जा रहा है.”
एक दूसरी बात भी है जिस पर इंद्राणी ग़ौर करने की बात कहती हैं.
“पाकिस्तान के राजनीतिक हालात में किसी भी वक़्त सेना का योगदान सबसे अहम होता है. इमरान ख़ान के पीएम ना रहने के पीछे भी सेना और उनके बीच नाराज़गी को ही वजह बताया जा रहा है. माना ये भी जा रहा है कि शहबाज़ शरीफ़ के पीएम बनने के पीछे भी सेना की ही सहमति है. इसका मतलब ये हुआ कि शहबाज़ शरीफ़ ख़ुद क्या चाहते हैं या नहीं चाहते हैं वो उतना मायने नहीं रखती, जितना ये बात मायने रखती है कि पाकिस्तान की सेना भारत के साथ कैसे रिश्ते चाहती है. भारत में भी सभी की नज़र इस बात पर है.”
इंद्राणी आगे कहती है, पिछले तीन महीने में पाकिस्तान सेना प्रमुख जनरल क़मर जावेद बाजवा के बयानों पर ग़ौर करें तो साफ़ बात निकल कर सामने आती है कि वो भारत के साथ अच्छे व्यापारिक रिश्ते चाहते हैं. जबकि इमरान ख़ान ने बतौर प्रधानमंत्री कहा था कि भारत पाकिस्तान के बीच व्यापारिक रिश्ते बहाल नहीं हो सकता जब तक कश्मीर में अनुच्छेद 370 बहाल ना हो जाए.
ऐसे में शहबाज़ शरीफ़ के पीएम बनने के बाद, पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल क़मर जावेद बाजवा कश्मीर पर और दोनों देशों के व्यापारिक रिश्तों के बारे में क्या सोच रखते हैं, ये जानना महत्वपूर्ण हो जाएगा.
भारत से कैसे होंगे रिश्ते?
पाकिस्तान की राजनीति और सेना पर लिखने वाली वरिष्ठ पत्रकार आयशा सिद्दिका भी मानती हैं कि मसला शहबाज़ शरीफ़ से ज़्दादा जनरल बाजवा का है. क्या पाकिस्तान की सेना भी भारत के साथ बेहतर रिश्ते चाहती है.
हाल ही में पाकिस्तान की कोर्ट ने हाफ़िज सईद को 31 साल की जेल और संपत्ति को ज़ब्त करने का आदेश दिया. आयशा कोर्ट के इस फैसले को भी भारत के साथ रिश्ते बेहतर करने के लिए सेना द्वारा लिए गए क़दम के तौर पर देखती है.
बीबीसी से लंदन से बातचीत में वो कहती हैं, “लगता है जनरल बाजवा का पाकिस्तान से आतंकवाद ख़त्म करने के अपने वादे को पूरा करना चाह रहे हैं ताकि भारत के साथ रिश्ते बेहतर हो सके.”
आयशा इस बात भी ज़िक्र करती हैं कि भारत से रिश्तों पर नई हुकूमत चाहेगी कि कल्चर, क्रिकेट और कॉमर्स ( 3C) के जरिए भारत के साथ संबंध आगे बढ़ाने की कोशिश की जाए और कश्मीर, सियाचिन, सर क्रीक जैसे बड़े मसलों का हल बाद में ढूंढा जाए.
एक दिन पहले में मुस्लिम लीग के नेता मुशाहिद हुसैन ने भारत में पत्रकार करण थापर के साथ इंटरव्यू में इसका जिक्र भी किया था.
कश्मीर पर जनरल बाजवा का बयानलगभग साल भर पहले जनरल बाजवा ने कश्मीर को लेकर एक बयान दिया था जो काफ़ी सुर्खियों में रहा.
उन्होंने कहा था, “ये समझना महत्वपूर्ण है कि शांतिपूर्ण तरीक़ों से कश्मीर विवाद के समाधान के बिना मैत्रीपूर्ण संबंध हमेशा ख़तरे में रहेंगे. जो राजनीति से प्रेरित आक्रामकता की वजह से पटरी से उतर सकते हैं. बहरहाल हमारा मानना है कि यह समय अतीत को भुलाकर आगे बढ़ने का है.”
उनका ये बयान इस परिपेक्ष में और महत्वपूर्ण हो जाता है कि क्योंकि फरवरी 2021 के बाद से दोनों देशों की सीमा पर सीजफायर का उल्लंघन नहीं हुआ है.
हालांकि आयशा कहतीं है कि भारत पाकिस्तान संबंध आगे कैसे होंगे? इसके लिए एक दो बातों पर ध्यान देने की भी ज़रूरत है.
“पहला ये कि क्या जनरल बाजवा सेना प्रमुख के तौर पर कार्यकाल विस्तार ले पाएंगे? या फिर पाकिस्तान में नए सेना प्रमुख आएंगे. और नए सेना प्रमुख का भी भारत के प्रति यही रुख़ रहेगा? दूसरा ये कि बैक चैनल टॉक जो पिछले कुछ समय से चल रही है, उसमें क्या कुछ हासिल हुआ है? इस मुद्दे पर भारत क्या सोचता है?”
2024 में भारत में आम चुनाव होने हैं और 2023 में पाकिस्तान में आम चुनाव होने हैं. पाकिस्तान की नई सरकार की उम्र कितनी लंबी है, इस पर भी कयास लगाए जा रहे हैं.
ऐसे में दोनों देशों के पास रिश्तों में गर्मजोशी दोबारा लाने के लिए कुछ महीनों का ही वक़्त है. फिर दोनों मुल्कों के नेता अपनी घरेलू राजनीति में व्यस्त हो जाएगें.
इंद्राणी कहती हैं कि पाकिस्तान में पूर्व में ऐसे कई प्रधानमंत्री हुए हैं, जिन्होंने शुरुआत में भारत के साथ अच्छे रिश्तों की वक़ालत तो की लेकिन बाद में कश्मीर का राग अलापने लगे. इस वजह से शहबाज़ शरीफ़ को थोड़ा और वक़्त देने की ज़रूरत है.
2015 में मोदी-नवाज़ शरीफ़ की मुलाक़ात के बाद साल 2016 में पठानकोट वायुसेना अड्डे पर हुए चरमपंथी हमले के बाद भारत पाकिस्तान के बीच रिश्ते एक बार फिर तनावपूर्ण हो गए. भारत ने इस हमले के लिए पाकिस्तान स्थित एक संगठन को ज़िम्मेदार ठहराया.
इसके बाद उरी में भारतीय सेना के कैंप समेत एक के बाद एक हमलों ने रिश्ते को और ख़राब कर दिया. 5 अगस्त, 2019 को भारत की ओर से जम्मू और कश्मीर के विशेष दर्जे को ख़त्म कर इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने के बाद दोनों देशों के बीच संबंध और बिगड़ गए.