महंत की सियासी प्लानिंग.
संपादकीय,15 दिसंबर। छत्तीसगढ़ में राज्यसभा की दो सीटों का कार्यकाल जून 2022 में समाप्त हो रहा है। चुनाव के करीब 6 महीने पहले से ही राज्यसभा जाने के इच्छुक नेताओं की दिल की बात जुबां पर आने लगी है। इसमें सबसे पहला नाम विधानसभा अध्यक्ष डॉ चरणदास महंत का आता है। वे पिछले कुछ दिनों से लगातार मीडिया में अपनी इस इच्छा को जाहिर कर रहे हैं कि अब उनका लक्ष्य राज्यसभा जाना है। वे कहते हैं कि राजनीतिक जीवन में अब तक 10 चुनाव लड़ चुके हैं।
पत्नी ज्योत्सना महंत के चुनाव को मिलाकर 11 चुनाव हो जाते हैं। अब वे राज्यसभा के जरिए देश की बात करना चाहते हैं। हालांकि तीन साल पहले साल 2018 में छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव के ठीक बाद महंत मुख्यमंत्री की रेस में भी थे। वे खुद कह चुके हैं कि सेमीफायनल खेल चुके हैं। किसी भी खेल में सेमीफायनल तक पहुंचना भी बड़ी बात होती है, भले ही वो सियासत का खेल क्यों ना हो ?
कुल मिलाकर महंत मान चुके हैं कि अब वे रेस में शामिल नहीं होंगे। कारण कुछ भी हो सकते हैं, लेकिन खिलाड़ी की तरह सियासतदारों के रिटायरमेंट प्लानिंग की समीक्षा तो होती है। यहां भी समीक्षा शुरू हो गई है। कहा जा रहा है कि महंत अपने बेटे सूरज महंत को सियासी मैदान में उतारना चाह रहे हैं। पिछले कुछ समय से वे अपने पिता के साथ सक्रिय भी रहते हैं। माता-पिता के संसदीय क्षेत्र के राजनीतिक और सामाजिक कार्यक्रमों में वे शामिल होते हैं। बेटे की सक्रियता को देखकर लोग यही अनुमान लगा रहे हैं कि महंत की चुनावी विरासत को वे ही संभालेंगे।
वैसे विधानसभा अध्यक्ष के पद की अपनी मर्यादाएं हैं, जिसमें राजनीतिक सक्रियता कम हो जाती है। लोगों से सीधा जुड़ाव नहीं होता। महंत भी इस बात को स्वीकार कर चुके हैं। ऐसे में संभव है कि वे अपनी राजनीतिक सक्रियता को बरकरार रखने के लिए यह उपाय कर रहे होंगे।
दूसरी तरफ, छत्तीसगढ़ में विधानसभा अध्यक्ष की कुर्सी संभालने के बाद चुनावी राजनीति में असफलता का भी मिथक है। प्रेमप्रकाश पांडे, धरमलाल कौशिक और गौरीशंकर अग्रवाल इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। हो सकता है कि महंत ने इस तथ्य पर गौर किया होगा, क्योंकि वे ज्योतिष और मिथकों पर भरोसा करने वाले माने जाते हैं।