जगदलपुर,5 अगस्त। बस्तर जिला कांग्रेस कमेटी शहर द्वारा बस्तर टाइगर शहीद महेंद्र कर्मा जी की जयंती स्थानीय “राजीव भवन” में सादगी व गरिमा के साथ मनाई गई।उसके उपरांत शहर के हृदय स्थल झंकार चौक स्थित बस्तर टाइगर शहीद महेंद्र कर्मा की आदमकद मूर्ति पर जिलाध्यक्ष राजीव शर्मा सहित जनप्रतिनिधिगण व जिला कांग्रेस कमेटी के पदाधिकारियों व कार्यकर्ताओं की गरिमामय उपस्थिति में माल्यार्पण कर श्रद्धांसुमन अर्पित की गई।
तदुपरांत उनके जीवनी पर प्रकाश डालते जिलाध्यक्ष राजीव शर्मा ने कहा कि शहीद महेंद्र कर्मा छत्तीसगढ़ के कद्दावर नेताओं में से थे परिवर्तन यात्रा के दौरान माओवादियों द्वारा किए गए झीरम नरसंहार में उन्होंने भी अपने प्राणों की आहुति दी। आज उन्हीं की जयंती पर कांग्रेस परिवार के लोग श्रद्धा सुमन अर्पित करने एकत्रित हुए हैं उन्होंने बस्तर में कांग्रेस की मजबूती के लिए कई योगदान दिया था कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व द्वारा दिए गए जवाबदारी का उन्होंने ईमानदारी के साथ निर्वहन किया।
बस्तर टाइगर शहीद महेंद्र कर्मा बस्तर की आवाज़ हुआ करते थे उनकी कार्य करने की शैली अदभुत थी वाकई उन्होंने एक टाइगर की तरह बस्तर में अपनी भूमिका निभाई। प्रदेश सहित देश में महेंद्र कर्मा एक जाना पहचाना नाम हुआ करता था जो किसी तार्रुफ़ का मोहताज नहीं था छात्र जीवन से ही राजनीति में लीडरशिप के रूप में एक अपनी पहचान बनाई है बस्तर सहित पूरा प्रदेश उनकी कार्यशैली से काफी प्रभावित था व्यावहारिकता और कुशल नेतृत्व उनके जीवन में कूट-कूट के भरी थी अपने क्षेत्र में भी उन्होंने पार्टी की मजबूती के लिए कई कार्य किए कार्यकर्ताओं में उनकी काफी अच्छी छवि और पकड़ थी उनकी जीवनशैली को उनके समर्थक अपना आदर्श मानकर उसका अनुसरण कर रहे हैं अपने विधानसभा क्षेत्र में बस्तर टाइगर शहीद महेंद्र कर्मा की एक अलग छाप थी सेवक बनके उन्होंने अपने क्षेत्र के लोगों की सेवा की और उनके अच्छे बुरे वक्त में भी कंधे से कंधा मिलाकर खड़े रहते थे और क्षेत्रवासियों को ऐसे हालातों और विषम परिस्थितियों में भी अकेलेपन महसूस होने का एहसास कभी नहीं दिलाया इसलिए लोग उन्हें पूजते थे तथा वह अपने क्षेत्र के मसीहा भी थे।
बस्तर के कद्दावर नेता बस्तर टाइगर शहीद महेंद्र कर्मा बस्तर की राजनीति में बस्तर टाइगर के नाम से जाने वाले महान नेता रहे है शहीद महेंद्र कर्मा ने बस्तर के जनता के प्रति उनकी समर्पण भावना आदिवासियों के उत्थान की सोच और जरूरतमंदों के लिए हमेशा मददगार एवं सरकार पक्ष की हो या विपक्ष की हमेशा कार्यरत रहे हैं शहीद महेंद्र कर्मा में कॉलेज की पढ़ाई के दौरान ही उनमें नेतृत्व की क्षमता विकसित हो गई थी उनकी क्षमता के अनुसार ही इन्होंने राजनीति में कदम रखा सन 1980 में 30 वर्ष की आयु में उन्होंने दन्तेवाड़ा से विधायक की सीट पर जीत दर्ज कर पहली बार विधायक बने, 1994 में दंतेवाड़ा जिला पंचायत का चुनाव लड़ कर इन्होंने जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी हासिल की।
जब छठवीं अनुसूची बस्तर में लागू करने की बात उठी तो उन्होंने अपनी ही पार्टी से बगावत कर 1996 में संसद का चुनाव निर्दलीय लड़ा और सांसद बने बस्तर के गैर आदिवासियों के बीच उनकी काफी अच्छी पैठ और भूमिका थी बस्तर के गैर आदिवासी उन्हें अपना कद्दावर नेता समझते थे और उन्होंने इस विश्वास और भरोसे को कायम भी रखा इस बीहड़ अंचल की तरक्की और विकास में इन्होंने अपना लोहा मनवाने में सफल साबित हुए, अविभाजित मध्यप्रदेश में जेल मंत्री के पद पर कार्यरत रहते हुए अपनी जिम्मेदारियों का बखूबी निर्वहन किया, छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद वाणिज्य, उद्योग, ग्रामोद्योग और सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्री भी बने।