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फर्श से अर्श तक : साल 2000 में पहली बार विधायक बनीं, पति-दो बेटों की असामयिक मौत से भी नहीं टूटीं मुर्मू

राष्ट्रीय,22 जून। राजग की राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की आंतरिक मजबूती की खूबसूरत और अद्भुत कहानी हैं। पार्षद के रूप में राजनीतिक कॅरिअर शुरू करने वाली द्रौपदी का बतौर अनुसूचित जनजाति वर्ग (एसटी) से देश का पहला और बतौर महिला दूसरा राष्ट्रपति बनना तय है। ओडिशा के बेहद पिछड़े और संथाल बिरादरी से जुड़ी 64 वर्षीय द्रौपदी के जीवन का सफर संघर्षों से भरा रहा है।

आर्थिक अभाव के कारण महज स्तानक तक शिक्षा हासिल करने में कामयाब रही द्रौपदी ने पहले शिक्षा को अपना कॅरिअर बनाया। इससे पहले ओडिशा सरकार में अपनी सेवा दी। बाद में राजनीति के लिए भाजपा को चुना और इसी पार्टी की हो कर रह गई। साल 1997 में पार्षद के रूप में उनके राजनीतिक कॅरिअर की शुरुआत हुई।

साल 2000 में पहली बार विधायक और फिर भाजपा-बीजेडी सरकार में दो बार मंत्री बनने का मौका मिला। साल 2015 में उन्हें झारखंड का पहला महिला राज्यपाल बनाया गया। 20 जून को मुर्मू ने अपना जन्मदिन मनाया है। पूर्व राष्ट्रपति वीवी गिरी भी ओडिशा में पैदा हुए थे, लेकिन वह मूलत: आंध्र प्रदेश के रहने वाले थे।

पति-दो बेटों की असामयिक मौत से भी नहीं टूटीं

मुर्मू का जीवन उनके जीवटता को दर्शाती है। जवानी में ही विधवा होने के अलावा दो बेटों की मौत से भी वह नहीं टूटीं। इस दौरान अपनी इकलौती बेटी इतिश्री सहित पूरे परिवार को हौसला देती रहीं। उनकी आंखें तब नम हुईं जब उन्हें झारखंड के राज्यपाल के रूप में शपथ दिलाई जा रही थी।

एक तीर से कई शिकार

द्रौपदी को उम्मीदवार बना कर भाजपा ने एक तरफ जहां आदिवासी वर्ग को पूरी तरह साधने की कोशिश की है, वहीं बीजेडी का समर्थन हासिल करने का भी बहाना ढूंढ लिया है।

आदिवासी वर्ग से होने के कारण अब झारखंड मुक्ति मोर्चा के लिए बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है, क्योंकि यह पार्टी इस वर्ग की राजनीति करती रही है।

इसके अलावा अनुसूचित जाति से पहली बार उम्मीदवार बनाए जाने के कारण विपक्ष के लिए भी अलग तरह की चुनौती खड़ी हुई है।

तब अंतिम समय में कट गया था पत्ता

द्रौपदी मुर्मू के नाम पर बीते राष्ट्रपति चुनाव में भी विचार गंभीरता से विचार हुआ था।

भाजपा खास कर पीएम नरेंद्र मोदी पिछले चुनाव में ही देश को पहली अनुसूचित जाति वर्ग से राष्ट्रपति बनाने का मन बना चुके थे।
तब अचानक इसके लिए अनुसूचित जनजाति वर्ग से जुड़े वर्तमान राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद केनाम पर मुहर लगी।

आरिफ पर चर्चा के बाद द्रौपदी के नाम पर मुहर

राष्ट्रपति चुनाव के लिए उम्मीदवारी के सवाल पर भाजपा में जिन प्रमुख नामों पर चर्चा हुई, उनमें केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान का नाम सबसे आगे था। हालांकि गुजरात, पश्चिम बंगाल, ओडिशा सहित कुछ अन्य राज्यों में बेहतर राजनीतिक संभावनाएं तलाशने के लिए द्रौपदी मुर्मू के नाम पर अंतिम मुहर लगी। इस दौर में राज्यपाल थावर चंद गहलोत के नाम पर भी गंभीरता से विमर्श हुआ था, हालांकि खुद गहलोत ने वर्तमान राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को ही दोबारा मौका दिए जाने की दलील दी थी।

सूत्रों का कहना है कि फिलहाल खान को उपराष्ट्रपति बनाने का विकल्प खुला है। राष्ट्रपति चुनाव संपन्न होने के बाद उपराष्ट्रपति चुनाव पर व्यापक चर्चा होगी। गौरतलब है कि केंद्रीय नेतृत्व ने राष्ट्रपति चुनाव के संदर्भ में आरिफ मोहम्मद खान के साथ भी कई दौर की बातचीत की थी। सूत्रों का कहना है कि इस बारे में गहलोत की प्रधानमंत्री से मुलाकात हुई थी। इस मुलाकात में उन्होंने कहा था कि अगर पार्टी अनुसूचित जाति को फिर से राष्ट्रपति बनाना चाहती है तो इसके लिए वर्तमान को ही एक और मौका दिया जाना चाहिए।

द्रौपदी को मौका क्यों?

दरअसल भाजपा का आदिवासियों में प्रभाव लगातार बढ़ता जा रहा है। देश में इस बिरादरी की आबादी सवा आठ फीसदी है। कुछ महीने बाद गुजरात में विधानसभा चुनाव होने हैं। यहां यह बिरादरी संख्या की दृष्टि से बेहतर प्रभावशाली है। फिर इस बिरादरी का प्रभाव पश्चिम बंगाल, झारखंड, आंध्रप्रदेश और ओडिशा में भी बहुत ज्यादा है। इनमें से ओडिशा और पश्चिम बंगाल में पार्टी अरसे से सत्ता हासिल करना चाहती है। फिर इस बिरादरी का प्रभाव मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, कर्नाटक में भी है।

पार्टी का इस बिरादरी में बेहद प्रभाव है। इसका अंदाजा इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि बीते लोकसभा चुनाव में एसटी आरक्षित 47 सीटों में से 31 सीटों पर भाजपा को जीत हासिल हुई थी। फिर मूर्म को खांटी भाजपाई होने के साथ महिला और अनुसूचित जाति वर्ग से होने का सीधा लाभ मिला।

दलित के साथ आदिवासी दांव

देश को अब तक सभी वर्गों से राष्ट्रपति मिल चुका है। दलित बिरादरी से केआर नारायणन के बाद रामनाथ कोविंद देश का प्रथम नागरिक बन चुके हैं।

महिला वर्ग से प्रतिभा पाटिल को मौका मिल चुका है। मुस्लिम बिरादरी से फखरुद्दीन अली अहमद और एपीजे अब्दुल कलाम राष्ट्रपति बन चुके हैं।

अब तक अनुसूचित जनजाति वर्ग से किसी को प्रथम नागरिक बनने का मौका नहीं मिला था। मुर्मू की उम्मीदवारी ने इस कमी को दूर कर दिया है।

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