जान जोखिम में डाल और नियमो को ताक पर रखकर जोरो से चल रहा क्रेशर का काम.
जगदलपुर,2 दिसम्बर । जिला मुख्यालय से 35 किलोमीटर दूर दरभा ब्लॉक के छोटेकड़मा मे क्रेशर/ खदान मे पर्यावरण नियमों की धज्जिया व मजदूरों के स्वास्थ्य के साथ खुनी खेल खेला जा रहा है। रिजर्व फॉरेस्ट क्षेत्र में वन की कटाई व खुदाई कर वन नियमों की खदान संचालकों के द्वारा उड़ाई जारी नियमों की धज्जियां। सात ही वन के संरक्षण के लिए लगाए गए फेंसिंग तार को भी नुकसान पहुंचाया गया हैं।
खदान संचालक उड़ा रहे नियमो की धज्जियां.
मिली जानकारी के अनुसार छोटे कड़मा में संचालित कई खदान हैं, काम कर रहे मजदूरों के पास सुरक्षा का कोई भी उपकरण नहीं दिया गया है, वही खदानो मे नाबालिग बच्चों से बिना कोई सुरक्षा उपकरण के लापरवाही पूर्वक खदान मालिक अपने निजी लाभ के लिए काम करवा रहे है। जिसे देख ऐसा लगता है की खदान के संचालक नियम कायदों की धज्जियां उड़ाकर धड़ल्ले से स्टोन क्रेशर चला रहे हैं। और विभाग आँख मुंदे मानो किसी अप्रिय घटना का इंतजार कर रहा हो ?
नाबालिक से काम करवाने से जेल भी हो सकती है.
इस मामले मे क़ानून के जानकारों का कहना है की बच्चों से काम करवाना बाल एवं किशोर श्रम के संशोधित अधिनियम 2016 के अनुसार 18 से कम उम्र के किसी भी बालक व किशोर से काम नहीं कराना चाहिए अगर कहीं 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चे कार्य कर रहे हैं, तो क़ानून के तहत जेल की सजा हो सकती है।
हमे धमकी देते है जैसा कहा जाए वैसा करो – ग्रामीण
नाम नहीं छापने की शर्त मे मजदूरों ने बताया की मजदूरों के पास काम के वक्त जूता,हेलमेट, दस्ताना व मास्क जैसी सुरक्षा उपकरण उपलब्ध ही नहीं है जो काम के दौरान बेहद जरूरी है। मजदूरों ने यह भी बताया कि खदान से काफी मात्रा में डस्ट निकलता है जो हवा के माध्यम से हमारे शरीर में चला जाता है जिससे हम लोग बीमार हो रहे हैं हमने कई बार खदान के मालिक से सुरक्षा उपकरण के लिए कहा पर वह एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल देते हैं, और हमें धमकी भी दिया जाता हैं की ज्यादा बात करें तो काम से निकाल दिए जाओगे इसलिए जो खदान के मालिक कहते हैं जैसा करवाते हैं हम वैसा करते हैं।
विस्फोट से मेरा पैर फैक्चर हो गया ग्रामीण
वहीं राजूर ग्राम पंचायत के एक कार्य कर रहे मजदूर का कहना हैं की बीते 10 साल पहले खदान में विस्फोट के समय उसके पैर में एक पत्थर लगा था जिसकी वजह से उसके पैर में रॉड लगा हैं दुर्घटना के वक्त खदान मालिक के द्वारा कह गया था की तुम्हारा इलाज का खर्चा व भरण पोषण दिया जाएगा,लेकिन मालिक ने ऐसा नहीं किया पैसा नहीं होने की वजह से मज़बूरी में देसी दवाई करवाना पड़ा आज भी अच्छा इलाज ना होने के कारण पैर में परेशानी हैं।
नाबालिक कर रहे खदान में काम!
खदान में काम कर रही नाबालिक बच्ची ने बताया कि मेरी उम्र 17 साल हैं बीते एक वर्ष से मै खदान में काम कर रही हैं। आगे ग्रामीणों ने कहा की उनसे लापरवाही पूर्वक काम लेते हैं काम के वक्त दुर्घटना होने पर मालिक के द्वारा किसी प्रकार का सहयोग नहीं मिलता ओर ना ही प्रशासन से मदद. बाकि काम करना तो हमारी मज़बूरी हैं, छोटी मोटी दुर्घटना आये दिन होते रहती हैं।
डॉक्टर सहित यह उपकरण उपलब्ध होने चाहिए.
विभागीय सूत्र का कहना है की खदान पर प्राथमिक चिकित्सा हेतु फास्टेड बॉक्स, स्ट्रक्चर आदि सब रखा जावे एवं सप्ताह में एक दिन उपचार हेतु डॉक्टर की भी व्यवस्था संचालक के द्वारा की जाती है। वही खनन कार्य छोटे पैमाने पर किया जाए, जिसे मजदूरों को खदान में कार्य करने में किसी प्रकार का खतरा नहीं रहेगा. वायु प्रदूषण के बचाव के लिए नोजकेप ,आंखों के लिए चश्मा, हेलमेट,जूता एवं सेफ्टी बेल्ट उपलब्ध कराया जाता है।
पानी का नियमित रूप से छिड़काव हो
खनन कार्य में ब्लास्टिंग हेतु गीली ड्रिलिंग की जाए जिसे वर्गीकरण हवा में समाहित ना हो वायु प्रदूषण की रोकथाम के लिए वहां चलने वाले सड़क पर पानी का छिड़काव नियमित रूप से दिन में दो बार किया जाना चाहिए।वाहनों में धुएं की रोकथाम के लिए यंत्र लगाकर प्रदूषण को नियंत्रित किया जाता है साथ ही वाहनों एवं मशीनों में फिल्टर का उपयोग किया जाता है.
वायु प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण पर नियंत्रण.
वायु प्रदूषण को नियंत्रण के लिए भारत सरकार के कानून वायु प्रदूषण नियंत्रण अधिनियम 1981 का भी पालन किया जावेगा। साथ ही वृक्षारोपण करके हरित पट्टी का विकास किया जाए,जिससे वायु प्रदूषण एवं ध्वनि प्रदूषण पर नियंत्रण किया जा सके।
विस्फोट से हमारे घरों को नुकसान – ग्रामीण
वहीं ग्रामीणों ने बताया कि क्रेशर पास होने के कारण निकलने वाली डस्ट सीधे हमारे घरों में पानी,खाना,कपड़े व शरीर में चला जाता है जिससे हम बीमार हो रहे हैं और दमा व कई प्रकार की बीमारी की शिकायत हो रही है इसकी शिकायत हमने कई बार सम्बंधित लोगो से की पर अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई,अभी भी खदान चल रहा है और हमें परेशानी हो रही है, ग्रामीणों ने यह भी बताया कि खदान गांव से सटे होने के कारण जब खदान में विस्फोट किया जाता है विस्फोट की ध्वनि इतनी ज्यादा होती है कि घर पर रखी सामान कंपन की वजह से नीचे गिर जाता है वही विस्फोट के धमाके से कुछ कच्चे मकान को भी नुकसान हुआ हैं।
मजदूरों पर बना सिलोकोसिस जैसी खतरनाक बीमारी का खतरा !
इस मामले पर जानकारों का कहना है की क्रेशर संचालन के लिए डस्ट को बाहर जाने से रोकने के लिए डस्ट अरेस्टर होना चाहिए। जहां पर क्रेशर संचालित है उस क्षेत्र के तीन और बड़ी दीवार होनी चाहिए। पर्यावरण सुरक्षा की दृष्टि से संघन वृक्षारोपण क्षेत्र में होना अनिवार्य है। नियम के तहत स्टोन क्रेशर में सुबह शाम सिंचाई होनी चाहिए।
वहीं पर्यावरण संरक्षण मंडल के अनुरूप वायु प्रदूषण की रोकथाम नहीं होने के चलते इसका सबसे अधिक खामियाजा मजदूरों को भुगतना पड़ता है,जानकारी के मुताबिक जिले के कुछ खदानों में इन नियमों की अनदेखी के चलते कई मजदूर सिलिकोसिस जैसी खतरनाक बीमारी का भी खतरा उत्पन्न होने की संभावना जताई जा रही है।
प्रदूषण की वजह से जानवरो के अस्तित्व पर खतरा !
ग्रामीणों ने बताया कि खदान का क्षेत्र वन आरक्षित भूमि से घिरा हैं.जहां वन विभाग की ओर से सुचना बोर्ड लगा हैं लेकिन खदान संचालक नियमों को ताक में रखकर आरक्षित भूमि पर ही माइनिंग का कार्य कर रहे हैं जिससे आरक्षित भूमि में लगे पेड़ो व जंगली जानवरो को नुकसान हो रहा हैं. माइनिंग से निकलने वाले डस्ट के पानी में मिल जाने से जानवर पानी के पिने से बीमार हो रहे हैं.इस पर सम्बंधित विभाग के जवाबदार अधिकारी सब देख के भी आँख बंद कर बैठे है.
आरक्षित वन के 12 मीटर की दूरी पर होता है काम.
जब हमने वन विभाग के विश्वसनीय सूत्र से इस मामले पर जानकारी चाही तो उनका कहना है, कि आरक्षित वन में किसी भी प्रकार के कार्य पूर्णतः प्रतिबंधित रहता है.(ग्रामीणों द्वारा पशुओं की चराई को छोड़कर) साथ ही आरक्षित वन के 12 मीटर की दूरी में किसी भी प्रकार से कमर्शियल कार्य नही किए जाते अगर इस दायरे में कोई भी कार्य करता पाया जाता है तो संबंधित के खिलाफ एफआईआर कर जेल भेजने की कार्यवाही की जाती है।
कही जिम्मेदार किसी बड़ी घटना के इंतजार में तो नहीं ?
माइनिंग एरिया की वजह से जब लोगो को इतनी समस्या ओर संचालक के द्वारा अनियमितता बरती जा रही हैं ओर लोग अपनी समस्या को लेकर कई बार सम्बंधित को शिकायत भी कर चुके हैं बावजूद इसके भी जवाबदार कार्यवाही करने से बच रहे है. इस पूरे मामले को देखकर यही लग रहा है मानो ज़िम्मेदार किसी अप्रिय घटना के इंतजार में बैठे हो और तब वह कार्यवाही की प्रक्रिया को अंजाम दे.