जगदलपुर

ग्रामीण क्षेत्रो में झोला छाप डॉक्टरों के हौसले बुलंद..लोगो की जान जोखिम में डाल, कर रहे धड़ल्ले से इलाज.

 

जगदलपुर, 5 जुलाई। बस्तर जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में झोलाछाप डॉक्टरों की भरमार है। चाय की गुमटियों जैसी दुकानाें सहित घरों में झोलाछाप डॉक्टर मरीजों का इलाज कर रहे हैं। मरीज चाहे उल्टी, दस्त, खांसी, बुखार से पीड़ित हो या फिर अन्य कोई बीमारी से। सभी बीमारियों का इलाज यह झोलाछाप डॉक्टर करने को तैयार हो जाते हैं। खास बात यह है कि अधिकतर झोलाछाप डॉक्टरों की उम्र 25 से 40 साल के बीच है। वही इलाज के दौरान मरीज की हालत बिगड़ती है तो उससे आनन फानन में महारानी हॉस्पिटल या फ़िर डीमरापाल मेडिकल कॉलेज भेज दिया जाता है। जबकि यह लापरवाही कि जानकारी स्वास्थ्य विभाग के आला अधिकारियों को भी है। बावजूद इसके भी कोई कार्रवाई नहीं देखने को मिलती।

मरीजों का इंतजार करते श्री चंद्राकर

ताज़ा मामला जिले के जगदलपुर ब्लॉक के माड़पाल का है जहां गाँव के कुछ लोगो ने नाम नहीं छापने के शर्त पर बताया कि गांव में वीरेंद्र कुमार चंद्राकर नामक व्यक्ति ने घर पर ही क्लीनिक संचालित कर रखी है जहां पर गांव के अलावा आस-पास के गांव के लोग अपना इलाज करवाने आते है। जहां वीरेंद्र चंद्राकर मरीजों का मलेरिया, दस्त, बुखार, सर्दी – खासी जैसी और भी कई बीमारी का इलाज कर रहे है। साथ ही मरीजों को इंजेक्शन वह ग्लूकोस बॉटल चढ़ाने का काम भी करते हैं। वही सूत्र बताते है कि वीरेंद्र चंद्राकर ने ना तो कभी डॉक्टरी कि है ओर ना ही इनके पास एमबीबीएस की डिग्री है।(साहब के पास बीईएमएस की डिग्री मौजूद है) बावजूद इसके भी इनके द्वारा कई सालो से मरीजों का इलाज किया जा रहा है, वही वीरेंद्र चंद्राकर ने महिला कर्मचारी भी नियुक्त कर रखा है।

बिना लाइसेंस के दवाओं का भंडारण भी करते हैं झोलाछाप डॉक्टर!

झोलाछाप चिकित्सकों द्वारा बिना पंजीयन के एलोपैथी चिकित्सा व्यवसाय ही नहीं किया जा रहा है। बल्कि बिना ड्रग लाइसेंस के दवाओं का भंडारण व विक्रय भी अवैध रूप से किया जा रहा है। दुकानों के भीतर कार्टून में दवाओं का अवैध तरीके से भंडारण रहता है। बावजूद इसके भी स्वास्थ्य विभाग द्वारा अवैध रूप से चिकित्सा व्यवसाय कर रहे लोगों के खिलाफ किसी तरह की कार्रवाई नहीं की जाती है।

अपनी पारी का इंतजार करता बुजुर्ग

इन दिनों मौसमी बीमारियों का कहर है। झोलाछाप डॉक्टरों की दुकानें मरीजों से भरी पड़ी हैं। मानसून दस्तक दे चुका है जिस कारण इन दिनो उल्टी, दस्त, बुखार जैसी बीमारियां ज्यादा पनप रही हैं। झोलाछाप इन मरीजों का इलाज ग्लूकोज की बोतलें लगाने से शुरू करते हैं। एक बोतल चढ़ाने के लिए इनकी फीस 100 से 200 रुपए तक होती है।

केस बिगड़ने पर अस्पताल रैफर कर देते हैं मरीज.

बीते कुछ वर्षों से फर्जी डिग्रीधारी डॉक्टरों की वृद्धि हुई है। ग्रामीण क्षेत्र में कोई मात्र फर्स्ट एड के डिग्रीधारी हैं तो कोई अपने आप को बवासीर या दंत चिकित्सक बता रहा है लेकिन इनके निजी क्लीनिकों में लगभग सभी गंभीर बीमारियों का इलाज धड़ल्ले से किया जा रहा है। कुछ झोला छाप डॉक्टरों ने तो अपनी क्लिनिक में ही ब्लड जांच, यूरीन जांच, बोतल चढ़ना, इंजेक्शन लगाना इत्यादि की सुविधा भी कर रखी है।

इस मामले पर वीरेंद्र कुमार चंद्राकर का कहना है कि

डॉक्टर वीरेंद्र चंद्राकर

मै वेलनेस पर काम कर रहा हु। हायर इंस्टिट्यूट से जो इंजेक्शन लिखे जाते हैं उसे मैं लगा देता हूं, क्योंकि मुझे इंजेक्शन लगाने आता है। लोगों की सुविधा के लिए मैं इंजेक्शन दवाई लगवा रहा था बाकी यह करना बिल्कुल भी गलत है, क्योंकि मुझे अधिकार नहीं मिला है।

वही मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉक्टर श्री चतुर्वेदी का कहना है कि

नर्सिंग होम एक्ट के तहत जिले में 74 क्लिनिक पंजीबद्ध है। लगातार शिकयत मिलने के बाद समय-समय पर ग्रामीण इलाको में चल रहे झोला छाप डॉक्टरों पर एक संयुक्त टीम बनाकर कार्यवाही की जाती है। अगर ग्रामीण इलाको में झोला छाप डॉक्टरों के द्वारा प्रैक्टिस किया जा रहा है तो नर्सिंग होम एक्ट के तहत उचित कार्यवाही की जाएगी.

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