पुतिन के लिए भारत की ज़रूरत इसलिए और बढ़ी

यूरोपियन यूनियन ने इस साल के अंत तक रूस से तेल आयात में 90 फ़ीसदी की कटौती करने का फ़ैसला किया है. ऐसे में कहा जा रहा है कि रूसी राष्ट्रपति पुतिन को भारत और चीन की ज़रूरत ज़्यादा बढ़ जाएगी.
ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार, रूस एशिया में तेल की आपूर्ति बढ़ाने की कोशिश कर रहा है. चीन, भारत और जापान एशिया में तीन बड़े तेल ख़रीदार देश हैं. जापान अमेरिका का क़रीबी सहयोगी है और उसने रूस से तेल आयात पर पाबंदी लगा दी है.
चीन और भारत दोनों रूस के क़रीब हैं. दोनों अपनी ज़रूरत का बड़ा हिस्सा तेल आयात करते हैं. दोनों देश रूस से तेल ख़रीद रहे हैं. भारत पर रूस से तेल नहीं ख़रीदने का दबाव है लेकिन भारत ने झुकने से इनकार कर दिया है.
रूस क़ीमत में छूट के साथ तेल दे रहा है और भारत को यह सौदा रास आ रहा है. लेकिन भारत अब भी रूस से अपनी ज़रूरत का दो से तीन फ़ीसदी तेल ही आयात करता है. ऐसे में पुतिन चाहेंगे कि यूरोप की कमी चीन और भारत पूरी करें.
एशिया में रूस के लिए तेल बेचने की कई मुश्किलें भी हैं. कारोबारियों का कहना है कि श्रीलंका और इंडोनेशिया जैसे देशों में रिफाइनरी प्लांट नहीं हैं. ऐसे में रूस के लिए यह बड़ी मुश्किल है. ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार, रूसी तेल कंपनी उरल्स के कच्चे तेल को इस्तेमाल लायक बनाने में भारत और चीन के रिफाइनरी प्लांट कारगर साबित हो सकते हैं.
रूस से भारत का तेल आयात लगातार बढ़ रहा है. दूसरी तरफ़ पश्चिम के देश रूस पर प्रतिबंध लगातार कड़े कर रहे हैं. वित्तीय बाज़ार और इन्फ़्रास्ट्रक्चर से जुड़े डेटा देने वाला अमेरिकी-ब्रिटिश प्रोवाइडर रीफिनिटिव के अनुमान के अनुसार, भारत का रूस से कच्चे तेल का आयात मई महीने में 30.36 लाख मीट्रिक टन पहुँच जाएगा.
यह पिछले साल रूस से भारत आए मासिक औसत कच्चे तेल 382,500 मीट्रिक टन से नौ गुना ज़्यादा है. रीफिनिटिव के अनुसार, यूक्रेन पर हमले के बाद से भारत रूस से 40.8 लाख मीट्रक टन तेल ले चुका है. रूस की उरल्स ऑइल अभी तेल क़रीब 95 डॉलर प्रति बैरल के हिसाब बेच रही है. दूसरी तरफ़ अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में तेल की क़ीमत 119 डॉलर प्रति बैरल है.